मैं उन्हें राष्ट्रमाता ही कहूँगा क्योंकि उन्होंने उस काल में शिक्षा / ज्ञान की ज्योति जलाई जिस काल में नारीशक्ति का पढ़ना तो दूर घर से निकलना भी दूभर होता था - अवनीश श्रीवास्तव
शिवपुरी - अत्याचार,अपमान सहते हुए भी वे अपने मार्ग से किंचित भी विचलित नहीं हुईं और सभी बाधाओं को पार करते हुए महान् समाज सुधारिका, कवियत्री, विद्वान बनीं ऐसी ज्ञानमूर्ति सावित्री बाई फुले जी की जयन्ती के निमित्त आज 3 जनवरी को सावित्री बाई फुले जी की जयंती पर व्याख्यान कार्यक्रम विद्याभारती मध्य भारत प्रान्त के शिवपुरी विभाग के सरस्वती विद्यापीठ आवासीय विद्यालय में मनाई गई ।
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता श्री अवनीश श्रीवास्तव आचार्य एवं अध्यक्षता श्री दिनेश अग्रवाल प्राचार्य सरस्वती विद्यापीठ आवासीय विद्यालय द्वारा की गई कार्यक्रम का शुभारंभ अतिथियों द्वारा माँ सरस्वती एवं सावित्री बाई फुले के चित्र पर माल्यार्पण कर किया गया।
कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए मुख्य वक्ता अवनीश श्रीवास्तव ने कहा कि सावित्री बाई फुले नारी मुक्ति आन्दोलन की पहली नेता तथा देश की पहली महिला अध्यापिका रही सावित्री बाई का जन्म 3 जनवरी 1831 में हुआ I उनका विवाह 9 वर्ष की आयु में पूना के ज्योतिबा फुले के साथ हुआ इस के बाद सावित्री बाई के जीवन में परिवर्तन आरंभ हो गया I 19 वी सदी में बाल विवाह छुआछूत सतीप्रथा जैसी कुरीतियाँ बुरी तरह व्याप्त थी महाराष्ट्र के महान सुधारक, विधवा पुनर्विवाह तथा स्त्री शिक्षा , नारी समानता के अगुआ महात्मा ज्योतिबा फुले की धर्मपत्नी ने अपने पति के सामाजिक कार्यों में कंधे से कन्धा मिलकर काम किया अनेक बार उनका मार्ग दर्शन भी किया उनकी जीवनी एक औरत के जीवन और मनोबल को समर्पित है सावित्री बाई ने तमाम विरोध और बाधाओं के बावजूद- धैर्य और आत्म विश्वास से अपना कार्य आगे बढ़ाती रही उन्होंने भारतीय समाज में स्त्रियों की शिक्षा की जोत जलाने की एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई वे प्रतिभाशाली कवयित्री, आदर्श अध्यापिका, निस्वार्थ समाज सेविका एवं सत्य शोधक समाज का नेतृत्व करने वाली महान नेता थी
वह समय स्त्रियों के लिए अंधकार पूर्ण था नारी शिक्षा का प्रचलन नहीं था विवाह के समय तक सावित्री बाई की स्कूली शिक्षा नहीं हुई थी और ज्योतिबा फुले तीसरी कक्षा पढ़े थे पर उनके मन में समाज की कुरुतियाँ दूर करने की और समाज सेवा की तीव्र इच्छा थी।
सर्वप्रथम उन्होंने सावित्री बाई को शिक्षित करना आरंभ किया I आम के पेड़ के नीचे विद्यालय लगाकर स्त्री शिक्षा की पहली प्रयोगशाला आरंभ हुई उन्होंने स्कूली शिक्षा प्राप्त कर अध्यापन का प्रशिक्षण लिया तथा भारत की पहली महिला अध्यापिका बनाने का गौरव प्राप्त किया I इस कार्य में अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ा 1848 में उन्होंने पूना में पहला बालिका विद्यालय खोला I जब वे स्कूल में पढ़ाने जाती थी तब रास्ते में उन्हें खूब कटाक्ष सुनने पड़ते तथा कीचड तथा गन्दगी उनके अंग पर डाली जाती थी वे अपने साथ रोज एक साड़ी ले जाती थी जिसे बदलकर विद्यालय में पढ़ाती तथा फिर से गन्दी साड़ी पहन कर वापस घर आती थी लेकिन इस तरह की अन्य कई परेशानियों का सामना करते हुए भी समाज सुधारक के कार्य में निरंतर अग्रसर होती गई I
धीरे धीरे पिछड़ी जाति के बच्चे, विशेष रूप से लड़कियाँ बड़ी संख्या में विद्यालय में आने लगी और ज्योतिबा – सावित्री दम्पति ने अगले चार वर्षोँ में 18 विभिन्न स्थानों पर स्कूल खोले l
इसके बाद उन्होंने अपना ध्यान बाल विवाह, विधवा विवाह पर केन्द्रित किया तथा 29 जून 1853 में बाल हत्या प्रतिबंधक घर की स्थापना की l इसमें विधवाएं बच्चें को जन्म दे सकती थी तथा यदि वे बच्चे को न ले जा सके तो बच्चे को वही छोड़कर जा सकती थी इस अनाथालय की सम्पूर्ण व्यवस्था सावित्री बाई खुद देखती थी तथा वहाँ के सभी बच्चो का लालन पालन, देख रेख एक माँ की तरह करती l इसी तरह सावित्री बाई फुले द्वारा विधवा पुनर्विवाह प्रोढ शिक्षा तथा मजदूरों के लिए रात्रि पाठशाला का कार्य भी किया गया l
1876-77 में जब पूने में अकाल पड़ा तब सावित्री – ज्योतिबा दम्पति ने 52 स्थानो पर अन्न छात्रवास खोले, तथा 2000 बच्चों के लिए भोजन का प्रबंध किया l ज्योतिबा – सावित्री दम्पति संतानहीन थे उन्होंने 1874 में एक विधवा ब्राह्मणी के नाजायज बच्चे को गोद लिया l उसका नाम यशवंतराव फुले रखा गया जो पढ लिख कर डॉक्टर बना । 1890 में महात्मा ज्योतिबा फुले के निधन के बाद सावित्री बाई ने उनके आन्दोलन को मजबूती से आगे बढ़ाया l 1897 में पूने में प्लेग के मरीजों का इलाज करने के दौरान उन्हे भी प्लेग ने धर दबोचा l 10 मार्च 1897 को उनका निधन हो गया l
भारत में उस समय अनेक पुरुष समाज सुधारक के कार्य में लगे थे लेकिन एक महिला होकर पुरुषों के साथ कंधे से कन्धा मिलाकर जिस प्रकार काम किया वह आज के समय में भी अनुकरणीय हैं महात्मा ज्योतिबा फुले और सावित्री बाई फुले का एक दूसरे की प्रति तथा एक लक्ष्य के प्रति समर्पित जीवन आदर्श दाम्पत्य की मिसाल हैं l
सावित्रीबाई प्रतिभाशाली कवियित्री भी थीं इनके कविताओं में सामाजिक जन-चेतना की आवाज पुरजोर शब्दों में मिलाती है उनका पहला कविता-संग्रह सन 1854 में 'काव्य फुले' नाम से प्रकाशित हुआ और दूसरी पुस्तक 'बावनकशी सुबोध रत्नाकर' शीर्षक से सन 1882 में प्रकाशित हुई। समाज सुधार के कार्यक्रमों के लिये सावित्रीबाई और ज्योतिबा को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा पैसे की तंगी के साथ-साथ सामाजिक-विरोध के कारण उन्हें अपने घर परिवार द्वारा निष्कासन को भी झेलना पड़ा लेकिन वे सब कुछ सहकर भी अपने लक्ष्य के प्रति समर्पित बने रहे भारत में उस समय अनेक पुरुष समाज सुधार के कार्यक्रमों में लगे हुए थे लेकिन महिला होकर पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर जिस प्रकार सावित्री बाई फुले ने काम किया वह आज के समय में भी अनुकरणीय है आज भी महात्मा ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले का एक दूसरे के प्रति औेर एक लक्ष्य के प्रति समर्पित जीवन आदर्श दाम्पत्य की मिसाल बनकर चमकता है इस कार्यक्रम में समस्त भैया एवं आचार्य परिवार उपस्थित रहा।