संसार में पाप का मुख्य कारण मोह है इसी के वसीभूत होकर मनुष्य गर्त में गिरता है
विवेक व्यास, मोनू प्रधान, रोहित वैष्णव कोलारस - शुक्रवार रामकथा के दूसरे दिन मां कनकेश्वरी देवी ने गुरुतत्व और गुरुता का भव्य और अलौकिक वर्णन किया उन्होंने व्यासपीठ से कहा कि गुरु का स्वभाव जल कमल वत रहता है जिस तरह कमल कीचड़ में और जल में रहते हुए भी खुद को स्पर्श नही करने देता वैसे ही गुरु इस संसार में रहते हुए भी खुद को सांसारिक माया मोह से दूर रखता है वह साधक के उद्धार के लिए हमेशा प्रयासरत रहता है गुरु का प्रभाव सूर्य के समान होता है जैसे सूर्य अपने ताप को बदलकर संसार के दोषों को जला डालता है वैसे ही गुरु अपने स्वभाव को कभी मधुर कभी कठोर कर साधक के दोषों को दूर करता है । मां कनकेश्वरी देवी ने कहा कि साधुता की मुख्य पहचान साधूता होती है कोई भी संत या गुरु अपने साधक के वैभव या भौतिक समृद्धि से प्रभावित नही होता बरन वह उसके गुण,विवेक,आचरण और व्यवहार से प्रभावित होता है। साधुता से ही कोई संत सुरक्षित रहता है केवल प्रारव्ध के कारण मिला बाहरी संतत्व काम का नही है उसे प्रणाम तो किया जा सकता है किंतु उसका अनुसरण नही किया जा सकता।
संसार में रहन वाला अपनी इंद्रियों से सांसारिक सुख का भोग करता है इसी माया और मोह से प्रभावित होकर वह पापकर्म में लग जाता है जबकि संत इस संसार में रहते हुए अपनी इंद्रियों से ब्रह्म तत्व के सुख का पान करता है।
द्वितीय दिवस कथा - श्री राम कथा, कोलारस, मध्यप्रदेश
पूज्या मां कनकेश्वरीदेवीजी की ब्रह्म परक वाणी से कथा सूत्र -
- कलयुग में अधिकांश लोग अपने स्वभाव के कारण दुखी होते हैं क्योंकि स्वभाव में असूरता ही कलयुग का मुख्य दोष हैं।
- स्वभाव सिद्धी मनुष्य जीवन की सर्वश्रेष्ठ सिद्धी हैं।
- जब तक स्वभाव में परिवर्तन नहीं होगा तब तक जीवन सार्थक नहीं हो सकता है।
- स्वभाव सिद्धी में प्रभु राम का स्वभाव बहुत मदद कर सकता है।
- जो दास होगा वही आगे जाकर खास होगा।
- सद्गुरु सदैव यही भाव रखते हैं कि सेवक जल्दी ही साधक बन जायें।
- जब सद्गुरु के प्रति सच्चा समर्पण भाव हो जाता है तो सद्गुरु साधना का मार्ग प्रशस्त करते हैं।
- सद्गुरु कभी भी शिष्य को अज्ञानी साबित नही करते हैं वो तो केवल ज्ञान प्रदान कर शिष्य के जीवन को सफल बनाने का कार्य करते हैं।
- गुरुत्व धन-वैभव से नहीं हमारे स्वभाव में व्याप्त गुणों से प्रभावित हो सकता ।
- शब्द ब्रह्म और पर ब्रह्म का ज्ञान प्राप्त करने वाले सद्गुरु ही निष्ठावान शिष्यों का कल्याण कर सकते हैं।
- जिसको भजन मिठा लगने लगे तथा परमात्मा अपना लगने लगे तो उसको संसार कभी भी अप्रिय नहीं हो सकता है।