गुरु अपने नर शिष्य में नारायण प्रकट करने में समर्थ
गुरु चरणों का जल गंगा जल के समान
विवेक व्यास, रोहित वैष्णव कोलारस - पंचम दिवस- श्रीराम कथा के अवसर पर पूज्या मां कनकेश्वरीदेवीजी की ब्रह्म परक वाणी से कथा सूत्र देते हुए कहा कि गुरु ही शिव है इस संसार में किसी को गुरु मिलना छोटी घटना नही है गुरु महादेव है उसके चरणों का मोदक गंगा जल है और वह जहां विराजमान होते है वह स्थान काशी हो जाता है साथ ही उन्होंने कहा...-
- रामकथा प्रगट है जबकि राम तत्त्व गुप्त हैं, रामकथा सरल है जबकि राम तत्त्व कठिन है।
- श्रीराम भारतवासियों की आत्मा में जन्म-जन्मांतर से प्रतिष्ठित हैं, रामकथा उसी प्रतिष्ठित को प्रगट करने का साधन है।
- रुप की उपासना स्वरूप तक पहुंचने की यात्रा हैं।
- सभी धार्मिक क्रियाओं का उद्देश्य उस परम तत्त्व के मार्ग पर अग्रसर होना ही है।
- आत्मा में जब स्वरूप का प्रकाश दर्शन हो जाता है तो व्यक्तित्व में निखार आ जाता है।
- जब एक बार राम हमारे स्वभाव में प्रतिष्ठित हो गये तो जीवन अयोध्या होने में समय नही लगता है।
- मन में विकृति तभी उत्पन्न होती है जब शरीर स्थिर होता है।
- धर्म भावना में कमी ना हो, अर्थ में संतुष्टि हो, कामनाएँ शांत हो जाये तब मुक्ति का मार्ग प्राप्त हो जाने से जीवन में राम का प्राकट्य हो जाता है।
- प्राप्त हुये अर्थ को ईश्वर की कृपा समझोगे तो जीवन में परमार्थ ही होगा।
- सिद्धों का ईष्ट सदैव बाल स्वरूप में ही होता है।
- जब बुद्धि स्थिर होने लगती हैं तो सद्गुरु स्वयं की तरह दिव्य दृष्टा बनाने मे देर नहीं करते हैं।
- सद्गुरु का हर शब्द तारक मंत्र होता है।
- अध्यात्म में नाम मिल जाना महामार्ग है तथा सद्गुरु मिल जाना जीवन के कल्याण का महाद्वार है। उक्त सभी सूत्रों को मां के साथ आए श्रीमहंत परमेश्वरानंद ब्रह्मचारी द्वारा प्रमुख रूप से संकलन कर जनमानस को धर्म की ओर अग्रसर करने पिरोया है।
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