कोलारस - शुक्रवार 08 मार्च को महाशिवरात्रि का महा पर्व वैष्णव सम्प्रदाय के लोग मनाऐंगें जिस प्रकार मां भगवती को प्रसन्न करने के लिये नव रात्रि का पर्व पूजा अनुष्ठान के साथ मनाया जाता है नवरात्रि वर्ष में 04 बार पड़ती है किन्तु शिवरात्रि का मुख्य बड़ा पर्व महा शिवरात्रि के रूप में वर्ष में एक ही बार पड़ता है ग्रंथों में ऐसा लेख है कि जो लोग वर्ष भर वृत उपवास पूजा पाठ नहीं कर पाते और जो लोग भगवान महादेव को मानते है उनके लिये शिवरात्रि सबसे बड़ा पर्व है ऐसा माना गया है कि शिवरात्रि के दिन रखा गया वृत उपवास एवं पूजा अनुष्ठान का फल इतना होता है कि लोगो को वर्ष भर किये गये पूजा कर्मो के बारबर फल प्राप्त होता है जिस प्रकार भगवान श्रीकृष्ण को प्रशन्न करने के लिये वृतों में एकादशी का वृत सबसे श्रेष्ठ वृत बताया गया है उसी प्रकार भगवान महादेव को प्रशन्न करने के लिये महाशिवरात्रि सबसे श्रेष्ठ दिन बताया गया है।
महाशिवरात्रि के दिन लोग नियमों का करें पालन - पं.नवल किशोर भार्गव
आप सभी को महाशिवरात्रि पर्व की शुभकामनाएं
(५) शिवरात्रि (नानापुराणशास्त्राणि) – यह व्रत फाल्गुन कृष्ण तुर्दशीको किया जाता है इसको प्रतिवर्ष करनेसे यह 'नित्य' और किसी कामनापूर्वक करनेसे 'काम्य' होता है। प्रतिपदादि तिथियोंके अग्नि आदि अधिपति होते हैं जिस तिथिका जो स्वामी हो उसका उस तिथिमें अर्चन करना अतिशय उत्तम होता है चतुर्दशीके स्वामी शिव हैं (अथवा शिवकी तिथि चतुर्दशी है) अतः उनकी रात्रिमें व्रत किया जानेसे इस व्रतका नाम 'शिवरात्रि' होना सार्थक हो जाता है यद्यपि प्रत्येक मासकी कृष्णचतुर्दशी शिवरात्रि होती है और शिवभक्त प्रत्येक कृष्णचतुर्दशीका व्रत करते ही हैं, किन्तु फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशीके निशीथ (अर्धरात्रि) - में 'शिवलिंगतयोद्भूतः कोटिसूर्यसमप्रभः।' ईशानसंहिताके इस वाक्यके अनुसार ज्योतिलिंगका प्रादुर्भाव हुआ था, इस कारण यह महाशिवरात्रि मानी जाती है 'शिवरात्रिव्रतं नाम सर्वपापप्रणाशनम्। आचाण्डालमनुष्याणां भुक्तिमुक्तिप्रदायकम् ॥'- के अनुसार ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, अछूत, स्त्री-पुरुष और बाल-युवा-वृद्ध-ये सब इस व्रतको कर सकते हैं और प्रायः करते ही हैं इसके न करनेसे दोष होता है। जिस प्रकार राम, कृष्ण, वामन और नृसिंहजयन्ती एवं प्रत्येक एकादशी उपोष्य हैं, उसी प्रकार यह भी उपोष्य है और इसके व्रतकालादिका निर्णय भी उसी प्रकार किया जाता है सिद्धान्तरूपमें आजके सूर्योदयसे कलके सूर्योदयतक रहनेवाली चतुर्दशी 'शुद्धा '२ और अन्य 'विद्धा' मानी गयी हैं उसमें भी प्रदोष (रात्रिका आरम्भ) और निशीथ (अर्धरात्रि)-की चतुर्दशी ग्राह्य होती है। अर्धरात्रिकी पूजाके लिये स्कन्दपुराणमें लिखा है कि (फाल्गुन कृष्ण १४ को) 'निशिभ्रमन्ति शूलभृद् यतः अतस्तस्यां चतुर्दश्यां सत्यां तत्पूजनं भवेत् ।।' अर्थात् रात्रिके समय भूत, प्रेत, पिशाच, शक्तियाँ और स्वयं शिवजी भ्रमण करते हैं: अत: उस समय इनका पूजन करनेसे मनुष्यके पाप दूर हो जाते हैं। यदि यह (शिवरात्रि) त्रिस्पृशा* (१३-१४-३० - इन तीनोंके स्पर्शकी) हो तो अधिक उत्तम होती है इसमें भी सूर्य या भौमवारका योग (शिवयोग) और भी अच्छा है 'पारण' के लिये 'व्रतान्ते पारणम्', 'तिथ्यन्ते पारणम्' और 'तिथिभान्ते च पारणम्' आदि वाक्योंके अनुसार व्रतकी समाप्तिमें पारण किया जाता है, किंतु शिवरात्रिके व्रतमें यह विशेषता है कि 'तिथीनामेव सर्वासामुपवासव्रतादिषु तिथ्यन्ते पारणं कुर्याद् बिना शिवचतुर्दशीम् ॥' (स्मृत्यन्तर) शिवरात्रिके व्रतका पारण चतुर्दशीमें ही करना चाहिये और यह पूर्वविद्धा (प्रदोषनिशीथोभयव्यापिनी) चतुर्दशी होनेसे ही हो सकता है। व्रतीको चाहिये कि फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशीको प्रात:कालकी संध्या आदिसे निवृत्त होकर भालमें भस्मका त्रिपुण्ड्र तिलक और गलेमें रुद्राक्षकी माला धारण करके हाथमें जल लेकर 'शिवरात्रिव्रतं ह्येतत् करिष्येऽहं महाफलम्। निर्विघ्नमस्तु मे चात्र त्वत्प्रसादाज्जगत्पते ।' यह मन्त्र पढ़कर जलको छोड़ दे और दिनभर (शिवस्मरण करता हुआ) मौन रहे। तत्पश्चात् सायंकालके समय फिर स्नान करके शिव-मन्दिरमें जाकर सुविधानुसार पूर्व या उत्तरमुख होकर बैठे और तिलक तथा रुद्राक्ष धारण करके' ममाखिलपापक्षयपूर्वकसकलाभीष्टसिद्धये शिवपूजनं करिष्ये' यह संकल्प करे। इसके बाद ऋतुकालके गन्ध-पुष्प, बिल्वपत्र, धतूरेके फूल, घृतमिश्रित गुग्गुलकी धूप, दीप, नैवेद्य और नीराजनादि आवश्यक सामग्री समीप रखकर रात्रिके प्रथम चारों पूजन पंचोपचार, षोडशोपचार या राजोपचार - जिस विधिसे बन सके समानरूपसे करे और साथमें रुद्रपाठादि भी करता रहे। इस प्रकार करनेसे पाठ, पूजा, जागरण और उपवास-सभी सम्पन्न हो सकते हैं। पूजाकी समाप्तिमें नीराजन, मन्त्रपुष्पांजलि और अर्ध्य परिक्रमा करे तथा प्रत्येक पूजनमें 'मया कृतान्यनेकानि पापानि हर शंकर । शिवरात्रौ ददाम्यर्घ्यमुमाकान्त गृहाण मे ॥' - से अध्यं देकर 'संसारक्लेशदग्धस्य व्रतेनानेन शंकर। प्रसीद सुमुखो नाथ ज्ञानदृष्टिप्रदो भव ।' से प्रार्थना करे। स्कन्दपुराणका कथन है कि फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशीको शिवजीका पूजन, जागरण और उपवास करनेवाला मनुष्य माताका दूध कभी नहीं पी सकता अर्थात् उसका पुनर्जन्म नहीं होता है।
इस व्रतकी दो कथाएँ हैं एकका सारांश यह है कि एक बार एक धनवान् मनुष्य कुसंगवश शिवरात्रिके दिन पूजन करती हुई किसी स्त्रीका आभूषण चुरा लेनेके अपराधमें मार डाला गया, किंतु चोरीकी ताकमें वह आठ प्रहर भूखा-प्यासा और जागता रहा था, इस कारण स्वत: व्रत हो जानेसे शिवजीने उसको सद्गति दी दूसरीका सारांश यह है कि शिवरात्रिके दिन एक व्याधा दिनभर शिकारकी खोजमें रहा, तो भी शिकार नहीं मिला अन्तमें वह गुँथे हुए एक झाड़की ओटमें बैठ गया। उसके अंदर स्वयम्भू शिवजीकी एक मूर्ति और एक बिल्ववृक्ष था उसी अवसरपर एक हरिणीपर वधिककी दृष्टि पड़ी उसने अपने सामने पड़नेवाले बिल्वपत्रोंको तोड़कर शिवजीपर गिरा दिया और धनुष लेकर बाण छोड़ने लगा तब हरिणी उसे उपदेश देकर जीवित चली गयी इसी प्रकार वह प्रत्येक प्रहरमें आयी और चली गयी। परिणाम यह हुआ कि उस अनायास किये हुए व्रतसे ही शिवजीने उस व्याधाको सद्गति दी और भवबाधासे मुक्त कर दिया बन सके तो शिवरात्रिका व्रत सदैव करना चाहिये और न बन सके तो १४ वर्षके' बाद 'उद्यापन' कर देना चाहिये।
उसके लिये चावल, मूँग और उड़द आदिसे 'लिंगतोभद्र' मण्डल बनाकर उसके बीचमें सुवर्णादिके सुपूजित दो कलश स्थापन करे और चारों कोणोंमें तीन-तीन कलश स्थापन करे। इसके बाद ताँबेके नाँदियेपर विराजे हुए सुवर्णमय शिवजी और चाँदीकी बनी हुई पार्वतीको बीचके दोनों कलशोंपर यथाविधि स्थापन करके पद्धतिके अनुसार सांगोपांग षोडशोपचार पूजन और हवनादि करे। अन्तमें गोदान, शय्यादान, भूयसी आदि देकर और ब्राहाणभोजन कराके स्वयं भोजनकर व्रतको समाप्त करे। पूजनके समय शंख, घण्टा आदि बजानेके विषयमें (योगिनीतन्त्रमें) लिखा है कि 'शिवागारे झल्लकं च सूर्यागारे च शंखकम्। दुर्गागारे वंशवाद्यं मधुरीं च न वादयेत् ॥' अर्थात् शिवजीके मन्दिरमें झालर, सूर्यके मन्दिरमें शंख और दुर्गाके मन्दिरमें मीठी बंसरी नहीं बजानी चाहिये।
शिवरात्रिके व्रतमें कठिनाई तो इतनी है कि इसे वेदपाठी विद्वान् ही यथाविधि सम्पन्न कर सकते हैं और सरलता इतनी है कि पठित-अपठित, धनी-निर्धन-सभी अपनी-अपनी सुविधा या सामर्थ्यके अनुसार शतशः रुपये लगाकर भारी समारोहसे अथवा मेहनत-मजदूरीसे प्राप्त हुए दो पैसेके गाजर, बेर और मूली आदि सर्वसुलभ फल-फूल आदिसे पूजन कर सकते हैं और दयालु शिवजी छोटी-से-छोटी और बड़ी-से-बड़ी-सभी पूजाओंसे प्रसन्न होते हैं।
जय श्रीमन्नारायण
पं. नवल किशोर भार्गव
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