प्रभु संकीर्तन - जीवन मे कुछ लोगों का केवल एक ही काम है, वो सत्य जानकर भी निंदा करना नही छोड़ते सोचें जब ये लोग अपनी प्रवर्ति नही छोड़ते तो हम उनकी बातों से सत्य या अच्छी बातें क्यो छोड़ते है।
कोई निंदा करें तो करने दो आप अपने कार्य मे मस्त होकर निंदा करने वालो को पूरी छूट दे दो,वे चाहे निंदा करे अथवा प्रशंसा करे।जिसमे उनकी रजा हो उन्हें खुश रहने दे जब आप एक बार निर्णय कर लेंगे ,दूसरों को छूट दे दोगे तो आपको भी मुक्ति मिल जाएगी।दुसरो से प्रशंसा सुनकर तो मनुष्य मकड़ जाल में फंस जाता हे।किन्तु निंदा में सचेत हो जाता है और पाप करने से बच जाता है कोई झूठी निंदा करे,तो आप चुप रहे।किसी को अपनी बात की सत्यता की पुष्टि मत करो।कोई पूछे तो सत्य बात कह दे बिना पूछे लोगों में कहने की जरुरत नहीं | बिना पूछे सफाई देना (सत्य की सफाई देना) सत्य का अनादर है भरत जी कहते हैं –
जानहुँ रामु कुटिल करी मोही | लोग कहउ गुरु साहिब द्रोही ||
सीता राम चरण रति मोरें | अनुदिन बढ़उ अनुग्रह तोरें |
*दूसरा आदमी हमें खराब समझे तो यह उसका अधिकार है, हमारे जीवन मे उसका कोई अर्थ नही है।हमारे अच्छे बुरे कार्यो के प्रति फल देते समय भगवान दूसरे की गवाही नहीं लेते |
जीवन मे कोई हमे अच्छा कहे तो हम अच्छे हो जाओगे , ऐसा कभी नहीं होगा | अगर हम बुरे है तो बुरे ही रहोगे | अगर हम अच्छे है तो अच्छे ही रहेंगे , भले ही पूरी दुनियां बुरी कहे | अच्छा होने पर भी लोग निंदा करे तो मन में आनंद आना चाहिए | एक संत ने कहा है –
*" मेरी निंदा से यदि किसी को संतोष होता है, तो बिना प्रयत्न के ही मेरी उन पर कृपा हो गयी ; क्योंकि कल्याण चाहने वाले पुरुष तो दूसरों के संतोष के लिए अपने कष्टपूर्वक कमाए हुए धन का भी परित्याग कर देते हैं ( मुझे तो कुछ करना ही नहीं पड़ा ) “|
*हम पाप नहीं करते , किसी को दुःख नहीं देते, फिर भी हमारी निंदा होती है तो उसमें दुःख नहीं होना चाहिए ,। प्रत्युत प्रसन्नता होने चाहिए | भगवान की तरफ से जो होता है , सब मंगलमय ही होता है | इसलिए मन के विरुद्ध बात हो जाए तो उसमें आनंद मनाना चाहिए |सोचें अच्छा है मेरे कर्मफल कट रहे है।क्योंकि इन्हें भोगना तो पड़ेगा ही।उसमें दुखी होने की बजाय परमात्मा का आभार व्यक्त करो।(साभार:अज्ञात)जय जय श्री राधेकृष्ण जी।श्री हरि आपका कल्याण करें।