भविष्योत्तरपुराण) - 'भाद्रस्य कजली कृष्णा शुक्ला च हरितालिका ।' के अनुसार भाद्रशुक्ल ३ को 'हरितालिका' का व्रत किया जाता है। इसमें मुहूर्तमात्र हो तो भी परा तिथि ग्राह्य की जाती है। (क्योंकि द्वितीया पितामहकी और चतुर्थी पुत्रकी तिथि है; अतः द्वितीयाका योग निषेध और चतुर्थीका योग श्रेष्ठ होता है।) शास्त्रमें इस व्रतके लिये सधवा, विधवा सबको आज्ञा है । धर्मप्राणा स्त्रियोंको चाहिये कि वे 'मम उमामहेश्वरसायुज्यसिद्धये हरितालिकाव्रतमहं करिष्ये।' यह संकल्प करके मकानको मण्डपादिसे सुशोभितकर पूजा-सामग्री एकत्र करे। इसके बाद कलशस्थापन करके उसपर सुवर्णादि-निर्मित शिव-गौरी (अथवा पूर्वप्रतिष्ठित हर-गौरी) के समीप बैठकर उनका 'सहस्त्रशीर्षा ० ' आदि मन्त्रोंसे पुष्पार्पणपर्यन्त पूजन करके ॐ उमायै० पार्वत्यै० जगद्धात्र्यै० जगत्प्रतिष्ठायै० शान्तिरूपिण्यै० शिवायै ० और ब्रह्मरूपिण्यै नमः' से उमाके और 'ॐ हराय० महेश्वराय० शम्भवे० शूलपाणये० पिनाकधृषे० शिवाय० पशुपतये और महादेवाय नमः' से महेश्वरके नामोंसे स्थापन और पूजन करके धूप-दीपादिसे शेष षोडश उपचार सम्पन्न करे और 'देवि देवि उमे गौरि त्राहि मां करुणानिधे । ममापराधाः क्षन्तव्या भुक्तिमुक्तिप्रदा भव ॥' से प्रार्थना करे और निराहार रहे। दूसरे दिन पूर्वाह्नमें पारणा करके व्रतको समाप्त करे। इस प्रकार नियत अवधि पूर्ण होनेपर या भाद्रपद शुक्ल ३ को हस्तनक्षत्र और सोमवार हो तो रात्रिके समय मण्डलपर उमा-महेश्वरकी मूर्ति स्थापित करके उनका यथाविधि पूजन करे और तिल, घी आदिसे आहुति देकर दूसरे दिन अष्टयुग्म या षोडशयुग्म (जोड़ा-जोड़ी)- को भोजन कराके १६ सौभाग्य-द्रव्य (सुहागटिपारे) दे; फिर स्वयं भोजन करके व्रतका विसर्जन करे। इसी दिन 'हरिकाली', 'हस्तगौरी' और 'कोटीश्वरी' आदिके व्रत भी होते हैं। इन सबमें पार्वतीके पूजनका प्राधान्य है और विशेषकर इनको स्त्रियाँ करती हैं।
पं. नवल किशोर भार्गव
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