कोलारस - रक्षवंधन पर्व को लेकर लोगो में कई तरह की भ्रांतियां है इसको लेकर पण्डित नवल किशोर शास्त्री जी ने निर्णय सागर पंचाग के अनुसार एवं कथा बाचक प्रदीप मिश्रा जी के अनुसार इस बार पूर्णिमा के साथ भद्रा लगने के कारण रक्षा वंधन का पवित्र पर्व भद्रा समाप्ति के उपरांत रात्रि 09 बजे के उपरांत रक्षा वंधन का पर्व बुधवार 30 अगस्त की रात्रि को ही मनाया जाना शुभ फलदाई होगा इसको लेकर पण्डित नवल किशोर शास्त्री जी ने पंचाग के मत अनुसार बताया कि - रक्षाबंधन क्यो मनया जाता हे और क्या बिधि है इसे मानने की इसे पढे
दिनांक 30अगस्त बुधवार 2023को शाम सूर्यास्त के बाद रात्रि 09,02से रात्रि 12बजे तक शुभ अमृत चंचल चौघडिया में " रक्षाबंधन " होगा
(मदनरत्न-भविष्योत्तरपुराण)- शुक्ल पूर्णिमाको होता है। इसमें पराह्णव्यापिनी तिथि ली जाती है। यदि वह दो दिन हो या दोनों ही दिन न हो तो पूर्वा लेनी (पहली ) चाहिये। यदि उस दिन भद्रा हो तो उसका त्याग करना चाहिये। भद्रामें श्रावणी और फाल्गुनी दोनों वर्जित हैं; क्योंकि श्रावणीसे राजाका और फाल्गुनीसे प्रजाका अनिष्ट होता है। व्रतीको चाहिये कि उस दिन प्रातः स्नानादि करके वेदोक्त विधिसे रक्षाबन्धन, पितृतर्पण और ऋषिपूजन करे। शूद्र हो तो मन्त्रवर्जित स्नान-दानादि करे। रक्षाके लिये किसी पवित्र वस्त्र या रेशम आदिकी 'रक्षा' बनावे। उसमें सरसों, सुवर्ण, केसर, चन्दन, अक्षत और दूर्वा रखकर रंगीन सूतके डोरेमें बाँधे और अपने मकानके शुद्ध स्थानमें कलशादि स्थापन करके उसपर उसका यथाविधि पूजन करे। फिर उसे राजा, मन्त्री, वैश्य या शिष्ट शिष्यादिके दाहिने हाथमें 'येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल ।।' इस मन्त्रसे बाँधे। इसके बाँधनेसेवर्षभरतक
पुत्र-पौत्रादिसहित सब सुखी रहते हैं कथा यों है कि एक बार देवता और दानवोंमें बारह वर्षतक युद्ध हुआ, पर देवता विजयी नहीं हुए, तब बृहस्पतिजीने सम्मति दी कि युद्ध रोक देना चाहिये। यह सुनकर इन्द्राणीने कहा कि मैं कल इन्द्रके रक्षा बाँधूंगी, उसके प्रभावसे इनकी रक्षा रहेगी और यह विजयी होंगे। श्रावण शुक्ल पूर्णिमाको वैसा ही किया गया और इन्द्रके साथ सम्पूर्ण देवता विजयी हुए हे!
30 अगस्त को ही क्यो मनेगा रक्षाबंधन - शास्त्रीय प्रमाण नीचे पढे
: श्रावण शुक्ल पूर्णिमा के दिनभद्रा रहित अपराह्नकाल में रक्षाबंधन पर्व मनाया जाता है।
"भद्रायांद्रे न कर्त्तव्ये श्रावणी फाल्गुनी तथा ।" शास्त्रों के अनुसार भद्रा के समय काल में रक्षाबंधन का पर्व (राखी बांधना ) विशेष रूप से वर्जित है।
याद रहे भद्रा चाहे कहीं की भी हो (स्वर्ग, पाताल या भूमि) रक्षाबंधन पर्व निषेध ही है, बाकी अन्य कार्य में आप भद्रा का वास देखते हुए निर्णय ले सकते हैं!
पुरुषार्थचिन्तामणिकार में भद्रा के सम्बन्ध में दो नियम : यदा द्वितीयापराह्नात् पूर्व समाप्ता, तदापि भद्रायांद्वे न कर्त्तव्ये श्रावणी फाल्गुनी. इति
भद्रायां निषेधादुत्तरैव तत्रतिथ्यनुरोधेन अपराह्नात्पूर्वम् अनुष्ठाने |
अपराह्नस्थ सर्वेथा बाधापत्तेः- अर्थात पहले दिन पूर्णिमा के अपराह्न में भद्रा हो ओर दूसरे दिन, दिन पूर्णिमा त्रिमुहूर्त व्यापिनी हो तो, और चाहे भद्रा अपराह्न से पूर्व ही समाप्त हो जाए तो भी दूसरे दिन अपराह्न में ही रक्षाबंधन किया जाता है, क्योंकि उस काल में अ साकल्यापादित पूर्णिमा का अस्तित्व रहेगा।"
यदा तूत्तरत्र मुहूर्त्तद्वय त्रय मध्ये किञ्चित् यूनापौर्णमासी, तदापराह्ने सर्वथा तद्भावत्, प्रदोषे- पश्चिमो यामौ दिनवत् कर्म चाचरेत् इति पराशरात् भद्रान्ते स प्रदोषयामेऽनुष्ठानम्।
"अर्थात दूसरे दिन पूर्णिमा त्रिमुहूर्तव्यापिनी न हो तो इस दिन में अपराह्न में साकल्यापादित पूर्णिमा भी नहीं रहेगी। ऐसी स्थिति ०६ में पहले दिन ही भद्रा समाप्ति के बाद प्रदोष के उत्तरार्ध में ही जाए राखी बांधी जाएगी!"
• इस संवत् २०५० में द्वितीय श्रावण शुक्ल पूर्णिमा ३०. ८. २३ को प्रातः १०:५९ बजे से प्रारम्भ है और ३१.८.२३ को प्रातः बाद ०७:०६ बजे समाप्त होगी, भद्रा का समय ३० तारीख को प्रात १०:५९ से रात्रि ०९ : ०२ तक है।
३१.३.२३ को पूर्णिमा मात्र ०१ घटी ५२ पल है जो की त्रि मुहूर्त से कम है, अपितु उपरोक्त नियम संख्या २ के अनुसार इस दिन रक्षाबंधन करना उचित नहीं है, अतः ३०.८.२३ को ही भद्रा का समय काल छोड़ते हुए प्रदोष में ही रक्षाबंधन का पर्व मनाया जायेगा !
निर्णय सागर पंचाग नीमच
पं. नवल किशोर भार्गव
मो .नं.9981068449